कैसे बना सिल्क मार्ग ?
सिल्क(रेशम) एक प्रकार का कपड़ा होता है जो की अपने चमकदार रंग और चिकनी बनावट के वजह से बाजार में बहुत मूल्यवान कपड़ा बना | सिल्क(रेशम) का कपड़ा बनाना थोड़ा मुश्किल प्रक्रिया है | कच्चा रेशम ,उसके कीड़े के ककून्स से मिलता है उसके बाद थक्का बना के कपडा बुना जाता था | यह रेशम बनाने का तरीका पहली बार चीन में 7000 ईo पहले आविष्कार किया गया था | चीन के कुछ लोग रेशम के कपड़े ले कर दुसरे राज्यों में कोई पैदल या घोड़े पे सवार होकर जाने लगे , वो लोग जिस-जिस रास्ते से होकर गए उन रास्तो को सिल्क मार्ग (silk route) के नाम से हमलोग जानते है |
चीन के राजा कभी-कभी सिल्क का बना हुआ कपडा ईरान और पश्चिमी एशिया के राजा लोगो को उपहार के तौर पे भिजवाते थे , वहा से ही रेशम बनाने का तरीका पूरे पश्चिमी देशो में फ़ैल गया | करीबन 2000 ईo पूर्व रेशम का बना कपड़ा पहनना एक प्रकार का फैशन हो गया था राजा और बहुत सारे रोम के आमिर लोगों के लिए | यह बहुत ही महँगा हुआ करता था , इसके महंगा होने का बस यह कारन था की ये सिर्फ चीन में बनता था और वहां से लाने में उनेह बहुत पहाड़ो,रेगिस्तानों और खतरनाक रास्तो से होकर गुजरना पड़ता था | जो लोग सिल्क मार्ग पे रहते थे वो व्यपारियों को उस रास्ते से जाने के लिए पैसे माँगा करते थे |
कुछ राजा सिल्क मार्ग को अपने अंडर लेना चाहते थे क्योकि उनेह कुछ टैक्स मिल सके या फिर व्यापारी लोग कुछ तौफा दे जो उस मार्ग से होकर जायेंगे , इन सब के बदले में राजा उनेह डकैतो और लुटेरों से बचाएंगे |कुषाणास नाम के एक राजा जो अच्छे तरीके से सिल्क मार्ग को अपने अंडर में रखे थे, जो की 2000 ईo पहले मध्य एशिया और भारत की उतर-पश्चिमी के क्षेत्रो पे राज करता था | उसका दो मुख्य राजधानी हुआ करता था पेशावर और मथुरा | इसके राज्य में तक्षिला भी आता था | इनके राज के समय में सिल्क मार्ग का एक साखा मध्य एशिया से नीचे की ओर इंडस नदी के बंदरगाह से पानी वाले जहाजों की सहायता से पश्चिम की और रोमन समराठो तक पहुचाई जाती थी | कुषाणास उन राजाओ में से एक थे जो महाद्वीपों में सोने की सिक्के चलाने का प्रचलन लाये थे | जो व्यापारियों द्वारा सिल्क मार्ग में इस्तेमाल किया जाता था |
कैसे फैला बुद्धिज़्म ? और कहा-कहा फैला ?
कुषाण का प्रशिद्ध राजा कनिष्क रहे है , जो की 1900 ईo पहले राज करते थे | वे एक बुद्धो का एक समिति बनाया जिसमे की विद्वान या पंडित लोग मिलते थे और किसी विसय पे सोच विचार कर के निर्णय लेते थे |
बुद्धो की अब समाज में अच्छी तरह से फैलाव हो चूका था | कुछ मथुरा में तो कुछ तक्षिला में हुआ |
दूसरा बदलाव ये था की बोधिसत्त्वास में जो आदमी विस्वास कर लेता था उनलोगो को माना जाता था की वो ज्ञान हासिल कर चुके है | और जो लोग ज्ञान हासिल कर लेते थे वो एकांत में रहते थे और अपना ध्यान केंद्रित करते थे , हलाकि ऐसा करने के वजाये वे समाज में रह के लोगो की मदद कर सकते थे | बोधिसत्त्वास की ध्यान और पूजा करना मध्य एशिया और चीन में बहुत ही प्रचलित हो गया था, बाद में कोरिया और जापान में भी फैला था |बुद्धिज़्म भारत के उत्तरी और दक्षिणी भाग में पूरा फैला था जहां की संतो को रहने के लिए पहाड़ो में अनेको गुफाये बनी थी | उनमे से कुछ गुफाये राजा और रानीओ के आदेश पे भी बनाई जाती थी | कुछ गुफाये तो व्यापारियों और किसान लोगो के लिए भी बना होता था | ये सब अक्सर पश्चिमी घाट पे हुआ करता था | सड़क बंदरगाह होते हुए शहर जाता था | व्यापारी लोग लगभग अपने सफर के दौरान इन गुफाओ में रहते थे |
बुद्धिज़्म दक्षिणी-पूर्व की ओर बढे जिनमे - श्री लंका ,म्यांमार ,थाईलैंड ,इंडोनेशिया और भी एशिया की दक्षिणी-पूर्ववि देश आते है | इन सभी अस्थानो में बुद्धिज़्म का पुराणा रूप थेरावदा(theravada) ज्यादा फैला |
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Outstanding
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